हम सब ने खत लिखे...
कभी दया की पर्ची
तो कभी धर्म का डंका,
कभी प्यार–मोहब्बत के पैगाम,
कभी मन्नतों के फरमान
कभी खोज–खबर,
कभी सिपाहियों की शान
तो कभी शहीदों के नाम!
कभी लिखे परिणाम,
तो कभी गुण–गान।
हम सब ने खत लिखे...
कभी लिखा यादों को,
कभी लिखा वादों को,
कभी बस मन की नज़ाकतों को...
कभी किया ज़ाया तकरार,
तो कभी सब्र का किया बेड़ा पार।
हम सब ने खत लिखे...
कुछ खत से ऐसे भी रहे
जो कागज़ पे उतारे ही नहीं गए
रहे वो मन के बक्से में..'
बनकर 'खता' किसी की
जो लिखे तो गए,
पर रह गए दबकर ....
'अहम' के सिरहाने तले।
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