बहते बारिश के पानी में थोड़ा कुछ बहा देना है
कुछ थोड़ा धुल सा जाना है
डरती हूँ - इस साल की बारिश कहीं थम न जाए..या कही मैं पिछे तो नहीं?
शुरुआत कहाँ से करूँ.. कुछ पता नहीं
मध्य का एक क्षणभर भी भरोसा नहीं
अंत एक है - इसी से बंधी आस है
अपने अस्तित्व का पहलू ढूंढने की कोशिश में बिखर गई....
कभी विश्वास का हाथ पकड़े मन की राहों से नाता जोड़ा था
'कल' की तब फ़िक्र थी न ही हमने उसे ज़रूरत समझा था
वो कल को कल समझने में चूक हो गयी और आज में कुछ ख़ामोशी cha गयी
सब कहते चले और हम सबकी सुनते चले...
वक़्त ऐसा भी आया की हमने बेझिझक अपनी ही सुनी
आज जब वक़्त ने हल्की सी करवट ली...
अपनों के प्यार को समझने की ज़रूरत लगी तो जाना की प्यार समझा नहीं जाता
वो तो महसूस होता है क्यूंकि वो बेहिसाब गहराई को छु जाता है
बस विश्वास ने हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
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