परछाई बन के जी रही थी,
समझती थी ' धूप ' का आना - जाना।
पर, जानती न थी कि,
एक दिन धूप होगी सिर के ऊपर,
और खो जाएगी परछाई,
यूं ही अस्तित्व बनकर।
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