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Tuesday, July 8, 2025

परछाई बन के जी रही थी

परछाई बन के जी रही थी,

समझती थी ' धूप ' का आना - जाना।

पर, जानती न थी कि,

एक दिन धूप होगी सिर के ऊपर,

और खो जाएगी परछाई,

 यूं ही अस्तित्व बनकर।



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