Tuesday, November 29, 2022

फिजा से मैंने पूछा

नज़दिक से गुज़रती फिजा से मैंने पूछा
कम से कम क्या तुम मेरी अपनी हो?

कुछ रूह के ज़ख्म..
हमें लगा था - वक्त ने जिन्हे सी दिया है
ऊधड़ से गए है...

क्या इन्हे भर पाओगी तुम?

तुम बहती हो हम हाथ थाम लेते हैं
फिर भटक न जाएं ज़िन्दगी की इस साए-साए में

क्या उन खोई आँखों की अश्रु धारा को

अपना पाओगी तुम?

क्या उन्हें उस चहरे की मुस्कराहट के रहते सूखा पाओगी तुम?





 

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