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Thursday, October 6, 2022

बहते बारिश के पानी में थोड़ा कुछ बहा देना है

बहुत कुछ बयां करना है।
बहते बारिश के पानी में थोड़ा कुछ बहा देना है
कुछ थोड़ा धुल सा जाना है

डरती हूँ - इस साल की बारिश कहीं थम न जाए..या कही मैं पिछे तो नहीं?

शुरुआत कहाँ से करूँ.. कुछ पता नहीं 
मध्य का एक क्षणभर भी भरोसा नहीं 
अंत एक है - इसी से बंधी आस है 

अपने अस्तित्व का पहलू ढूंढने की कोशिश में बिखर गई.... 
कभी विश्वास का हाथ पकड़े मन की राहों से नाता जोड़ा था 
'कल' की तब फ़िक्र थी न ही हमने उसे ज़रूरत समझा था 

वो कल को कल समझने में चूक हो गयी और आज में कुछ ख़ामोशी cha गयी 
सब कहते चले और हम सबकी सुनते चले...
वक़्त ऐसा भी आया की हमने बेझिझक अपनी ही सुनी

आज जब वक़्त ने हल्की सी करवट ली...
अपनों के प्यार को समझने की ज़रूरत  लगी तो जाना की प्यार समझा नहीं जाता 
वो तो महसूस होता है क्यूंकि वो  बेहिसाब गहराई को छु  जाता है 
बस विश्वास ने हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।

... 


Sunday, September 25, 2022

No-one told me...

No-one ever told me that I can never be home ever again...

No matter how much I try to fit in 

No matter how much I try to stick my plans of holidays around only home visits...Or even dare to make them

Just to be able to sneek a bit of time!

Time from and with ones I grew-up among.

Never ever anyone told me to be prepared- that I would leave even more wounded than ever...

Wounded from what?

Emotions of those whom I had know as mine...dearly mine but they failed to accept or even acknowledge.

I hold no grudge because I know they aren't sorted within and trying to find their own answers but in the whole game I became the one targetted. One who isn't enough for them or they fear that the acknowledgement may trodd me off my path.

No-one ever told how hollow it would feel...how engulfing the emptiness will be and how it all would appear as if I am fighting against nothingness....