सपनो की दौड़ ...
क्या है ये सपनो कि दौड़ ?
वो नही जो सुबह् से चले श्याम ढले कि होड् !
ये वो है जब वीकेण्ड् पर, मे चली माटी से मिलने ....
या कहो ...निकली खुद को टटोलने...
माटी !
कच्ची, गीली, नम और कितनी संवेदनशील
हर ऋतु का उसको एहसास ...
हर हस्त का उसको आभास
इतनी नाजुक, इतनी कोमल,
पानी मे मिलकर निखारे अपने गुण
पहली बार जब छुआ उसे ..तो लगा जैसे रिश्त गेहरा उससे
कभी चिकोटी काटी, कभी थापाय, कभी खरोचा, कभी चिपकाय...
पर इन सबसे ऊपर माटी ने एक सबक सिखाय ...
कि - कभी भी उससे मोह का बन्धन ना बान्धना
क्युकि जानते थे हम; और शायद वो भी ...
कीमत उस हर-एक पल की
जिसमे हम थे सुध् खोए और वो बुध को ढोए
मेरे सपनो कि दौड़ ..
माटी कि और :)
क्या है ये सपनो कि दौड़ ?
वो नही जो सुबह् से चले श्याम ढले कि होड् !
ये वो है जब वीकेण्ड् पर, मे चली माटी से मिलने ....
या कहो ...निकली खुद को टटोलने...
माटी !
कच्ची, गीली, नम और कितनी संवेदनशील
हर ऋतु का उसको एहसास ...
हर हस्त का उसको आभास
इतनी नाजुक, इतनी कोमल,
पानी मे मिलकर निखारे अपने गुण
पहली बार जब छुआ उसे ..तो लगा जैसे रिश्त गेहरा उससे
कभी चिकोटी काटी, कभी थापाय, कभी खरोचा, कभी चिपकाय...
पर इन सबसे ऊपर माटी ने एक सबक सिखाय ...
कि - कभी भी उससे मोह का बन्धन ना बान्धना
क्युकि जानते थे हम; और शायद वो भी ...
कीमत उस हर-एक पल की
जिसमे हम थे सुध् खोए और वो बुध को ढोए
मेरे सपनो कि दौड़ ..
माटी कि और :)
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