एक-टक राह तकते...
हर आहट को तुम्हारे आने का संकेत समझते।
एक तरफ गहरी चोट खाये...
दूसरी तरफ, बिछड़ने का दुःख दिल को लगाए।
वैसे तो 'फैसलों' से एक दूरी रखते...
पर नादान ये दिल समझे न - ये दरिया, ये फासले, ये नफरत, ये झगड़े।
ख़यालों के उलझ से गए धागे...
कतराती साँस भी मन भारी कर जाती।
,अनजान दर्द के इस सैलाब से...
राह तकती अखियां भी, पलकें मूँद
झलका देती वो आखरी बूँद।
फिर भर आती अखियां, जब जाता कोई अपना; अपने से दूर।
(24th July 2016)
No comments:
Post a Comment