जब मुलाकात हुई आपने-आप से.…
जाना कितना गहरा था साथ मेरा, मुझसे।
जाना की गूँज थी मैं...और शोर भी ।
कभी एक आहट, तो कभी एक शरारत,
वो सन्नाटा भी और वो पहल भी मैं।
वो सुलझी सी आरज़ू मैं.…
वो उलझी सी ख़ामोशी भी मैं।
जब मुलाकात हुई आपने आप से.…
जाना कितना गहरा था साथ मेरा, मुझसे।
जाने क्या खोजती थी अपने और अनजानों मे ?
शायद झलक थी मेरी अपनी.… उन दीवानों मे
कैसे ये रिश्ते कैसे ये नातें
इनसे हम है या हमसे ये जुड़ते जाते ?
जब मुलाकात हुई आपने-आप से.…
जाना कितना गहरा था साथ मेरा, मुझसे।
जिंदगी की भगदड़ में..... समझें न हम
अपने में मिले हम या अपनों के लिए जीएं हम?
कैसी ये मुलाकात ?..... सोच में पड़े है हम,
बाहर दिल का क्या भरोसा जब अपने होकर भी खुद से अजनबी है हम।
जाना कितना गहरा था साथ मेरा, मुझसे।
जाना की गूँज थी मैं...और शोर भी ।
कभी एक आहट, तो कभी एक शरारत,
वो सन्नाटा भी और वो पहल भी मैं।
वो सुलझी सी आरज़ू मैं.…
वो उलझी सी ख़ामोशी भी मैं।
जब मुलाकात हुई आपने आप से.…
जाना कितना गहरा था साथ मेरा, मुझसे।
जाने क्या खोजती थी अपने और अनजानों मे ?
शायद झलक थी मेरी अपनी.… उन दीवानों मे
कैसे ये रिश्ते कैसे ये नातें
इनसे हम है या हमसे ये जुड़ते जाते ?
जब मुलाकात हुई आपने-आप से.…
जाना कितना गहरा था साथ मेरा, मुझसे।
जिंदगी की भगदड़ में..... समझें न हम
अपने में मिले हम या अपनों के लिए जीएं हम?
कैसी ये मुलाकात ?..... सोच में पड़े है हम,
बाहर दिल का क्या भरोसा जब अपने होकर भी खुद से अजनबी है हम।
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