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Saturday, March 30, 2019

सपनो की दौड़

सपनो की दौड़ ...

क्या है ये सपनो कि दौड़ ?


वो नही जो सुबह् से चले श्याम ढले कि होड् !

ये वो है जब वीकेण्ड् पर, मे चली माटी से मिलने ....
या कहो ...निकली खुद को टटोलने...

माटी !
कच्ची, गीली, नम और कितनी संवेदनशील
हर ऋतु का उसको एहसास ...
हर हस्त का उसको आभास
इतनी नाजुक, इतनी कोमल,
पानी मे मिलकर निखारे अपने गुण

पहली बार जब छुआ उसे ..तो लगा जैसे रिश्त गेहरा उससे
कभी चिकोटी काटी, कभी थापाय, कभी खरोचा, कभी चिपकाय...
पर इन सबसे ऊपर माटी ने एक सबक सिखाय ...
कि - कभी भी उससे मोह का बन्धन ना बान्धना

क्युकि जानते थे हम; और शायद वो भी ...
कीमत उस हर-एक पल की
जिसमे हम थे सुध् खोए और वो बुध को ढोए

मेरे सपनो कि दौड़ ..
माटी कि और :)


Wednesday, November 14, 2018

A lantern in the heights






A lantern in the heights,
A warm kiss planted by a peeping light,
How the morning feels such a delight!
With the hottest drink on the coolest flight (indigo masala tea)
It's 5:30am & I am high-up...here in the sky
I am loving the warmth with winter hugging us all tight

A lantern in the sky.

(This was when I was en-route from Delhi to Hyd...The pic was speaking to me :)