Search This Blog

Friday, August 31, 2012

3. Bachpan

बचपन -- एक आना जाना
दुनिया के रस को न जाना न पहचाना
कभी खिलना कभी मुरझाना
सावन से था मिलना रोजाना
सिमटी सी दुनिया सारी
खुशिया थी मुट्ठी में हमारी
दुनिया-दारी बस यारी हमारी
दोस्त है तो दुनिया प्यारी
चंदा था मामा हमारा
तारों को न हमने जाना
सपनो में सजा संसार सारा
लिखना-पढना कारोबार हमारा
छोटी हार बड़ी जीत
नई थी हर एक रीत
सुनते थे मम्मी की डांट
रोते थे दूसरो के पास
रेत के टीलों में हाथ मिलाना
मिटटी से सारा संसार सजाना
भेल मिलके पिकनिक पे जाना
पापा की गाडी का एक राउंड लगाना
थाकन से चूर... मम्मी से पैर दबवाना
दूरदर्शान के सारे गाने गाना
बिचडे तो नम आँखे हमारी
जूडे तो रंगों से भी रंगीन दुनिया सारी
बीता ये बचपन ऐसे
आँख लगकर खुली हो जैसे
बचपन ले चला विदा हमसे
हसीन रहेगी वो यादें जुडी उससे
ज़िन्दगी के बड़प्पन में इतना घुल न जाना
गुदगुदाते उस भोलेपन को भूल न जाना

2. Baarish Ki Boonde


बारिश की वो बूंदे,
उनका यू धरती पर गिरना,
और गिरकर यू उसके साथ चलना
रात के अंधेरे में , 
 Source: http://danielyunhx.wordpress.com/2012/03/14/the-feel-of-rain/
चाँद की रौशनी में,
बिजली के तारो में उनका यू चमकना.

छु जाता है मेरे मन को
मन में बसे उस कोने को,
जिसमे रहता है कोई एक सपना,

कहीं कांच सा,
कहीं ओस सा
कही किसी सितार से निकले साज़ सा
यू रात के अँधेरे में,
झर-झर कर पत्तो से कान में कुछ कहना,
यु बड़ी इमारतों से लगकर,
उन्हें छूकर...उन्हें अपना एहसास दिलाना
इस तरह से उनका यू साथ मिलकर बरसना,
कहता है कुछ ख़ास है इस रात में,

गिरती है ये एक सी
टकराती है ये अनेको से
और देती है ये स्वर अनगिनत से.

चुपके से एक बूँद आती है,
कही दूर से  इठलाती, टकराती, डोलती हुई,
और कहती है मुझसे ....तुम क्यों आछुती हो मुझसे,
आओ चलो चले कही दूर पे,

समझ नहीं आता कहाँ से आती है ये बूंदे,
एक सी ....बस बरसती रहती है बस बरसती,
हवा का एक झोंका डगमगा देता है उन्हें
पर फिर बरसती है एक सी!
बारिश की वो बूंदे!