आसमान की चादर तले,
मैं टुकड़ा रेत सा...
आँखे खुली तो नज़राना था..
नीचे हम; और सारा ज़माना था।
नज़रों के सामने बेफिक्र अफ़साना(कहानी) था।
सुनहरी धुप का शामियाना था,
रंग बदलती चादर...आँखों का पैमाना (नाप) था।
चिड़ियों का आना जाना था।
धड़कनो को गिनता मैं एक-सा...
आसमान की चादर तले,
मैं टुकड़ा रेत सा...
यूँ तो मैं ज़र्रा हूँ ....२
ईमारत में एक ईट सा
या ढलते समय के बीच का
आसमान की चादर तले,
मैं टुकड़ा रेत सा...
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