Monday, March 13, 2017

हकीक़त

हक़ीक़त में - देने को कुछ नहीं हमारे पास..
हकीक़तें कभी-कभी 'दीवारें' बना जाती है।

लम्हें - जो एक एहसास छोड़ जाते...
उनमे से कुछ बाटें तेरे साथ।
हो सके तो संजोके रखलेना उन्हें...
वो साथ निभाएंगे।

फिर कभी मेरे होने न होने का ख्याल न होगा
वो बीते लम्हे तेरी हकीक़त बन जाऐंगे।

हमसे न पूछो - क्या करेंगे हम ?
जबसे होश संभाले - हर हकीक़त में कुछ लम्हों के महफ़िल सजाएं है.
आज शब्द भी कम लग रहे कुछ कमियां बयां करने को.... 

हक़ीक़त में - देने को कुछ नहीं हमारे पास..
हकीक़तें कभी-कभी 'दीवारें' बना जाती है।

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